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रतनगढ - कहानी दो जहां की (भाग 21)

आवाज का पीछा करते हुए निहारिका एक एसी जगह का पहुंचती है जहाँ से नीचे तहखाना होता है। निहारिका सतर्कता से देखते हुए नीचे जाने लगती है। दो सीढियां उतरने के पश्चात निहारिका ने देखा, नीचे बहुत से अर्धमानव मौजूद थे जो अपने वास्तविक रूप मे मौजूद थे। वे सभी एक निश्चित दिशा की ओर देख रहे थे। उनकी भाषा और बोलने का अंदाज बिल्कुल जुदा था कुछ ऐसा जैसे वे बीच बीच मे चीख रहे हों और बीच बीच मे शांत हो गये हों।

 उन्हे सुन कर निहारिका एक पल को अंदर तक कांप गयी। उनकी आवाजे दिल को दहला दे रहीं थी। जब निहारिका ने उनके देखने की दिशा की ओर देखा तब उसने पाया कि वे एक ऐसी मूर्ति की ओर देख रहे थे जो सर से लेकर पैर तक काली थी। उसकी आंखे भी धंसी हुई थी और उसके हाथ पैर भी मुड़े हुए थे। उसका मुन्ह न खुला ही था और न ही पूरी तरह बंद था। 

निहारिका का पैर मुड़ गया और वह लड़खड़ा गयी। अचानक आई इस आवाज से वे अर्धमानव चौंक गये और उनमे से कुछ ने तुरंत पीछे मुड़ कर देखा। निहारिका ने देखा समर वहाँ सबसे आगे खड़ा हुआ था और उसके सामने ही कुंवर वीर जीत का शरीर निष्प्राण पड़ा था। 

इसका मतलब ये लोग इस शरीर के साथ शोक मना रहे हैं – निहारिका सोचते हुए सम्हली ।

वहीं निहारिका को देख कर समर के होश उड़ गये और वह तेजी से उसकी ओर लपका। निहारिका तुरंत पीछे मुड़ी और तेजी से सीढियां चढने लगी। वह कुछ ही सेकंड मे ऊपर पहुंच गयी और छुपने के लिये तेजी से इधर उधर भागने लगी। भागते हुए वह वहाँ से हॉल मे पहुंची। हॉल मे एसी कोई जगह नही दिखी कि वह छुप सके सिवाय टेबल के। निहारिका ने टेबल को देखा और वह उसके पास ही छुपने के लिये भागी। लेकिन अगले ही पल उसे याद आया कि जानवरो की सूंघने की शक्ति वहुत तेज होती है वे उसे तुरंत पहचान लेंगे। हमे खुली जगह पर जाना चाहिये जिससे ये हमे न आसानी से न पहचान पाये। सोचते हुए निहारिका वहाँ से तुरंत ही खुली जगह तलाश करने भागी। वह उसी दरवाजे के पास जाकर रूक गयी जहाँ से उसे पीली रोशनी आ रही थी। 

महल मे कहीं भी पीली रोशनी नहीं थी। और वह केवल पीली रोशनी उसी ओर से आ रही थी। ‘हो न हो हो इसका यहाँ होना असाधारण ही है” सोचते हुए उसने उस दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा तेजी से खुल गया। निहारिका बिन ज्यादा कुछ सोचे उस दरवाजे के अंदर चली गयी। वह दौड़ रही थी और उसकी सांसे पैलेस के उस हिस्से के सन्नाटे को तोड़ रही थीं। उसने रुकते हुए चारो ओर देखा। ऐसा करते समय उसके हाथ घुटने पर थे और उसके माथे से पसीना छुट रहा था। वह एक बार फिर सीधी हुई उसने पीछे मुड़ कर देखा। उसके पीछे समर और समर के पीछे कुछ और अर्धमानव आ रहे थे। ‘ओह नो’ कहते हुए निहारिका के हाथ हवा मे आगे पीछे हुए और वह तेजी से भागी। कुछ आगे जाने पर उसने देखा उसमे पीली रोशनी डूबते सूरज की थी जो मशाल होने का भ्रम दे रही थी। 

आखिर हम खुले मे आ गये अब हम आसानी से छुप सकते हैं? सोचते हुए निहारिका ने अपने चारो ओर देखा दीवार पर उसे वही चारो बंदर नजर आये जो उसका पीछा कर रहे थे।वह चिंचियाने लगा। निहारिका तेजी से उस ओर गयी जहाँ दो खम्भे खड़े थे। वहीं समर दौड़ता हुआ उसके पास चला आया। उसकी आंखे अब चमक रही थी लेकिन वह अभी भी इंसान ही था। वहीं बाकी सभी अर्धमानव सभी समर के आसपास से निकलते हुए निहारिका के चारो ओर खड़े हो गये। निहारिका समझ नही पाई आखिर वे उस तक इतनी जल्दी कैसे पहुंच गये। निहारिका खम्भे से सटी हुई दहशत से उसमे चिपकी जा रही थी। वहीं वे सभी गुस्से से निहारिका की ओर देख रहे। और हिनहिना रहे थे। उनकी पूंछ बार बार उपर नीचे हो रही थी। एक अर्धमानव ने समर की ओर देख कर हिनहिनाया। समर बार बार अपने शरीर को देख रहा था और हैरत मे पड़ रहा था। जैसे उसे कुछ समझ मे नही आ रहा हो। समर ने इंकार मे अपनी गर्दन हिलाई। तो उस अर्धमानव ने गुस्से मे अपनी पूंछ दीवार पर पटकी। आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे भूकम्प आ गया हो। 

समर ने लगभग चीखते हुए कहा – इसे जाने दो। हम सब को इस शापित जीवन से मुक्ति केवल यही दिला सकती हैं।

उसे सुन कर दूसरे अर्धमानव तेजी से हिनहिनाने लगे जैसे वे अपनी असहमती दर्शा रहे हो। उन्हे सुन कर समर के चेहरे पर निराशा के भाव आये और उसने गुस्से मे दीवार पर मुक्का जड़ दिया। वह तेजी से निहारिका के पास गया उसने उसका हाथ पकड़ा और अपनी पीछे मौजुद  अर्धमानव को तेजी से धक्का देकर वह वहाँ से निकल गया।
उसके ऐसा करने से अर्धमानव गुस्से मे उसके पीछे बढे। लेकिन उसे कहाँ परवाह थी इस सब की। समर के मन मे तो बस निहारिका को सुरक्षित वहाँ से निकालने का ख्याल चल रहा था। वह उसी दिशा मे आगे बढता गया और वे अर्धमानव लगातार उसके पीछे आ रहे थे। समर इतनी तेजी से चल रहा था कि निहारिका को परेशानी हो रही थी उसके साथ चलने मे वह लगभग खिंचती जा रही थी।

वहीं उनके साथ साथ वे बन्दर भी चलते जा रहे थे। निहारिका ने पीछे मुड़ कर देखा वे बंदर अब दीवार से नीचे उतर चुके थे। और चारो अपनी फुर्ती से उन अर्धमानवो की गति को कम करने मे लग गये। वे कभी दायें आकर आगे निकल जाते तो कभी उनके बाये आकर उन्हे भटका देते। अर्धमानव बहुत जोर से हिनहिनाये। निहारिका चीखी – तो ये हमारी मदद कर रहे है, लेकिन क्यूं? वे इतनी फुर्ती से आगे से निकलते कि अर्धमानव को उन्हे देखने का समय ही नही मिलता और वे लड़खड़ा कर या तो गिर जाते या फिर रुक जाते। 

समर चलते हुए बोला – तुम अब भी नही समझी निहारिका।
 क्या मतलब समर,

समर बोला – ये सब तुम्हारी मदद ही कर रहे हैं। तुम तो सब अपनी आंखो से देख चुकी हो, फिर भी तुम्हे हैरानी है, आश्चर्य है? 
उसे सुन निहारिका चीखी – तो आपके कहने का मतलब है कि ये वही हैं। और हम... हम सच मे वही हैं? 
समर एक बड़े से दरवाजे के पार जाते हुए बोला – हां, तुम वही हो, और ये लोग तुम्हे कालिन्द्री समझ रहे हैं। लेकिन...  कहते हुए उसने निहारिका हाथ एक पल को छोड़ा और अगले ही पल उसने लकड़ी के दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा खुलने लगा। दरवाजे के खुलते ही वे बंदर तेजी से अर्धमानव की पीठ पर चढे और उन्होने अपने दोनो हाथ उनके कानो मे घुसा दिये। वे चीखे और रुक गये। उनकी पूंछ लहराते हुए उनके बंदरो की पीठ से जा टकराई और वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े। अगले ही पल वे फुर्ती से उठे और भागते हुए दरवाजे के पार जाने लगे। अर्धमानव भी गुस्से से उनके पीछे दौडे। आखिर उनकी ही वजह से उनका काम अधूरा रह गया। समर निहारिका को लेकर दरवाजे से बाहर निकल गया। उनके जाते ही वे बंदर भी एक एक कर बाहर आने लगे किंतु दरवाजा बंद होते होते उनमे से दो वहीं फंस कर रह गये और चिंचियाने लगे। बाहर निकले बंदरो ने जब सुना तो वे भी दरवाजे से जाकर उसे धकियाने लगे। और जोर जोर से आवाजे करने लगे। किंतु वे आवाजे धीरे धीरे कम होने लगी और अंत मे आना बिल्कुल बंद हो चुकी थीं।
 
जारी...

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4 Comments

Renu

19-Jul-2022 10:40 AM

👍👍

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Zakirhusain Abbas Chougule

20-Apr-2022 11:47 PM

Nice

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Shnaya

03-Apr-2022 02:21 PM

Very good

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